Wednesday, June 24, 2009

बिजनेस में बेईमानी

उनके हिस्से का झूठ

राजकिशोर

पैसा, पैसा, पैसा। बिजनेस, बिजनेस, बिजनेस। और कोई चाह नहीं, और किसी चीज की फिक्र नहीं, और कोई बढ़त नहीं। सरकार तटस्थ, निष्क्रिय और बेपरवाह। कोई देखने-भालनेवाला नहीं। कोई सुननेवाला नहीं। जो बोलेगा, वह मारा जाएगा।

यही सबक है हमारी शिमला यात्रा का। जब मेरी मसें नहीं भीगी थीं, हाई स्कूल में अंग्रेजी के परचे के लिए एक निबंध खूब पढ़ा-पढ़ाया जाता था - ट्रैवेल एज पार्ट ऑफ एडुकेशन। पर्यटन -- शिक्षा के अंग के रूप में। तब तो नहीं, पर पिछले कई सालों से जब भी यात्रा करता हूं, देश और समाज के बारे में कुछ कुछ नया जानने को जरूर मिलता है। पिछली बार मुजफ्फरपुर गया था, तो एक ऐसे टीटी से टकरा गया जो रोज हजार-दो हजार एक्स्ट्रा कमा कर घर लौटने के लिए प्रतिबद्ध था। लौट कर उसके व्यवहार के बारे में एक अखबार में लिखा, तो वह सस्पेंड हो गया। अभी जो लिखने जा रहा हूं, उसके बारे में ऐसा कोई भरोसा नहीं है।

शिमला के पास कुफ्री नाम की एक जगह है, जहां पहाड़ की चोटी पर जा कर चारों ओर का दृश्य देखने के लिए घोड़े पर जाना पड़ता है। वहां मैं पिटते-पिटते बचा (ऐसे मौके कई बार चुके हैं, इसलिए मैं उत्तेजित नहीं हुआ।) हुआ यह कि एक घोड़ेवाला एक दक्षिण भारतीय जोड़े को घोड़े के एक ट्रिप की कीमत तीन सौ रुपए बता रहा था। मेरी बेटी अस्मिता ने दो सौ रुपए पर घोड़े की सेवाएं ली थीं। यह बात मैंने उस युगल को इसलिए बता दी, ताकि उसका शोषण हो सके। इस पर आसपास मंडरा रहे सभी घोड़ेवाले बिदक गए और मुझे शर्मिंदा करने और धमकाने लगे तू बीच में क्यों बोलता है? हमारा बिजनेस क्यों खराब करता है? अपना-सा मुंह ले कर किराए पर ली गई कार में बैठा, तो एक घोड़ेवाला मेरे पास आया और बोला -- आपको दखल देने की जरूरत क्या थी? अगर आप बुजुर्ग नहीं होते, तो जरूर पिट जाते। फिर कभी ऐसा मत करना। हमारे ड्राइवर के साथी एक ड्राइवर ने बिन मांगी सीख दी -- आखिर उनके बिजनेस का सवाल है। आप भी कोई बिजनेस करते होंगे। बिजनेस में झूठ तो बोलना ही पड़ता है। आप भी अपने बिजनेस में झूठ बोलते होंगे। मुझे एक बार फिर शर्मिंदा होने का अवसर मुहैया कराया गया।

कुफ्री से लौटते हुए मेरे मन में खयाल आया कि सरकार ने अगर वहां एक तख्ती टांग दी होती कि एक घोड़े का उपयोक्ता शुल्क दो सौ या ढाई सौ रुपए है, तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होती। जिसको जाना होता, वह निश्चित शुल्क अदा करता और उचक कर घोड़े पर बैठ जाता। कुफ्री में जहां यह सौदा होता है, जगह बहुत कम है और गाड़ियां एक-दूसरे से गुत्थमगुत्था होती रहती हैं। इस अराजकता को नियंत्रित करने के लिए वहां कई पुलिसवाले तत्पर रहते हैं। पर यात्रियों का शोषण हो और घोड़ों के हर ट्रिप के लिए संकोची और स्मार्ट, दोनों को एक ही किराया देना पड़े, यह देखने के लिए सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं था। जाहिर है, सरकार भी इस सिद्धांत से सहमत है कि बिजनेस के मामले में दखल नहीं देना चाहिए। इस पर राष्ट्रीय सर्वसहमति है।

दिल्ली के महाराणा प्रताप बस अड्डे पर, जिसे सभी अज्ञानवश अभी भी आईएसबीटी कहते हैं, लौटना रात के चार बजे हुआ। जैसे तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं (यह मुझ पर हिन्दी अखबारों की भाषा पर असर है) के उतरते ही पंडों में युद्ध छिड़ जाता है कि यह शिकार मेरा है, वैसे ही बस से उतरते ही ऑटोवालों में हमें ले कर प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई। यह देख कर खुशी हुई कि रात के इतने बजे भी ऑटोवाले यात्रियों को अपनी सेवा प्रदान करने के लिए इंतजाररत (संपादक जी, कृपया बदलें) रहते हैं। पर इस संसार का अकाट्य नियम यह है कि हर खुशी क्षणिक होती है। अगले कुछ क्षणों में पता चला कि कोई हमें साढ़े तीन सौ रुपए में हमारे घर पहुंचाने के लिए व्यग्र था, तो किसी को इसके लिए सिर्फ तीन सौ रुपए की मुद्रा चाहिए थी। युवा बेटी ने फैसला सुनाया कि हमें प्री-पेड बूथ से ही ऑटो करना चाहिए। हम पांच थे, असलिए हमें दो ऑटो करने थे। यह सुनते ही एक ऑटोवाले ने बताया कि प्री-पेड में एक ऑटो के एक सौ पचहत्तर लगते हैं। मेरी जिज्ञासा वृत्ति प्रबल हो गई। मैंने पूछा -- अगर इससे कम रकम पर वहां ऑटो मिलता हो, तो? आप कहीं झूठ तो नहीं बोल रहे हैं? इस पर उस समकालीन इतिहासकार ने कहा झूठ कौन नहीं बोलता? हर धंधे में झूठ बोलना पड़ता है। प्री-पेड बूथ पर इसके साक्ष्य मिल गए। एक ऑटो के लिए मात्र एक सौ बीस रुपए का त्याग अपेक्षित था।

क्या यहां भी किसी पुलिसवाले को तैनात नहीं किया जा सकता था, ताकि वह थाने में बलात्कार वगैरह करने के बदले ऑटोवालों को मीटर पर चलने का कानून याद दिलाता रहे? 000

1 comment:

Neelima said...

कुफ्री के उन घोडों के लिए हमने भी तीन सौ साढे तीन सौ रुपये दिए थे आज से तीन साल पहले ! आपने याद दिला दिया ! दरअसल हर राज्य की सरकार को अपने पर्यटन उद्योग को बढावा देने के लिए कुछ मेहनत करनी होगी जिससे पर्यटन का यह उद्योग हमारे उत्साही और प्रकृति प्रेमी मन को मायूस न करए !