शैतान, जो हमारे भीतर रहता है
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अगर
जानवरों पर मानव समाज की दंड संहिता लागू कर दी जाए, तो लगभग सभी चौपाये कभी-न-कभी गिरफ्तार हो
जाएंगे. लेकिन जब उन पर मुकदमा चलेगा, तो जज कैसा भी हो, वह उन्हें ससम्मान बरी कर देगा. इसलिए कि
जानवरों में शैतानियत नहीं होती, उसी तरह जैसे उनमें संत नहीं पैदा होते.
इसका कारण यह है कि जानवर
स्वतंत्र इच्छाशक्ति से काम नहीं करता. वह जो कुछ भी करता है, प्राकृतिक
संवेगों के तहत करता है, जिन पर उसका कोई वश नहीं
होता.
‘चित्रलेखा’ की प्रसिद्ध उक्ति को थोड़ा बदल कर कहा जा सकता है कि जानवर न पुण्य करता है न पाप, वह वही करता है जो प्रकृति ने उसके लिए
निर्धारित कर रखा है. अगर वह बलात्कार
भी करता है, तो अपने स्वतंत्र निर्णय से नहीं, बल्कि इसलिए कि एक खास मौसम में उसकी यौन
उत्तेजनाएं जाग उठती हैं. तब नर मादा को खोजता है और उसका
मन नहीं हुआ तो उसके साथ जबरदस्ती करने लगता है. बाकी समय वह अपनी सज्जनता के दायरे में रहता
है.
मनुष्य
के साथ ऐसा नहीं है. वह जब चाहे तब उत्तेजित हो सकता है. उसकी यौनिकता के सिर उठाने के लिए कोई भी महीना, कोई भी दिन बाधक नहीं होता. इस मामले में वह 24X7 है. आदमी जानवर से ही निकला है, लेकिन कई मामलों में उससे भिन्न है. यह भिन्नता यौनिकता के
क्षेत्र में भी दिखाई पड़ती है. पशु की यौनिकता एक निश्चित
अवधि के दायरे में सीमित है, पर मनुष्य ऐसी कोई सीमा नहीं जानता. इसका रहस्य क्या है?
इतना
बड़ा बदलाव कैसे आया? वैज्ञानिकों
का कहना है कि चूंकि आदमी के बच्चे को विकसित और
आत्मनिर्भर होने में अनेक वर्ष लगते हैं, इसलिए यह वांछित है कि उसके माता-पिता लंबे समय तक
साथ रहें. प्रकृति जानती है कि स्त्री-पुरु ष का प्रेम
चाहे जितना सच्चा या गहरा हो, उसमें सेक्स का तत्व होता ही है. इसलिए दोनों को साथ रखना है, तो दोनों के भीतर यौन आकर्षण को किसी खास अवधि या मौसम तक सीमित नहीं किया
जा सकता. ऐसा लगता है कि इसी उद्देश्य से मनुष्य की
यौन कामना को बारहमासी बना दिया गया. लेकिन ईर कुछ चाहता है और आदमी कुछ और.
आदमी
को बुद्धि दी गई, ताकि वह अपना और अपने
समाज का भला कर सके. लेकिन किस युग में और किस देश
में बुद्धि का अनिष्टकारी इस्तेमाल नहीं हुआ? मूर्ख सिर्फ अपना नुकसान कर सकता है, लेकिन चतुर पूरी पृथ्वी को संकट में डाल सकता है. फ्रायड ने नहीं बताया होता, तब भी यह सुविदित है कि यौनिकता एक प्रचंड शक्ति है. इसीलिए प्राय: सभी संतों
ने पुरु षों को स्त्री की संगत से सावधान किया है. दोनों
के बीच ‘अवांछित’ घटनाओं
को रोकने के लिए स्त्री-पुरुष के अलग-अलग
बाड़े बनाए गए और खासकर स्त्रियों की स्वतंत्रता का दमन किया गया. लेकिन यौनिकता को
नियंत्रित नहीं किया जा सका. जिस दिन विवाह
की संस्था बनी, उसी दिन से व्यभिचार की
शुरुआत हो गई. देवताओं को भी इस प्रवृत्ति से बख्शा
नहीं गया.
हमारे
यहां तो सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को भी व्यभिचार बल्कि अगम्यगमन का दोषी होने की कल्पना की गई है. राजा-महाराजा
तो बड़े-बड़े रनिवास बनाए रखते ही थे, पर साधारण लोग भी परंपरागत नैतिकता से डिगते
रहे हैं. स्त्री की इच्छा के विरु द्ध
प्रत्येक यौन संसर्ग बलात्कार कहलाता है, मगर जिसे सहमति मान लिया जाता है, वह किसी मजबूरी का नतीजा भी हो सकती है. यह
बात आसानी से भुला दी जाती है. इसका
सबसे बड़ा उदाहरण है वेश्यावृत्ति. कोई भी औरत वेश्या होती नहीं है, बनाई जाती है. उसके बाद उसकी सहमति कुछ
सिक्कों से खरीदी जा सकती है. लेकिन
उसके साथ जो होता है, वह शुद्ध रूप से बलात्कार है. किसी भी वेश्या को अमीर बना दीजिए, फिर देखिए कि वह अपनी बोली लगाती है या नहीं. सेक्स की र्भत्सना कौन कर सकता है? कोई भी ऐसा शख्स नहीं, जिसका दिमाग साबुत है.
फिर
भी, ब्रह्मचर्य एक बोगस चीज है, यह समझने में डेढ़-दो शताब्दियां लग गई. बलात्कार ब्रह्मचर्य का विपरीतार्थक
शब्द है. ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाला स्त्री से भागता
है, जब कि बलात्कारी अपने को स्त्री पर थोपता
है. एक अच्छे समाज में न विवाह
के बाहर बलात्कार होगा, न विवाह के भीतर. सभी एक-दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करेंगे.
इस दृष्टि से, बलात्कारी वह है जो सभ्यता के न्यूनतम नियमों को मानने से
इनकार कर देता है. जरूरी नहीं कि हर आदमी के भीतर देवता का
निवास हो, लेकिन शैतान हर आदमी के भीतर रहता है. वह कभी भी सिर उठा सकता है. शैतान कमजोर से
कमजोर आदमी में भी इतनी हिम्मत भर देता है कि वह पाप
करने के लिए आतुर हो उठता है.
अकसर
बलात्कार के एक ही पक्ष पर ध्यान दिया जाता है, उसके
यौन हिंसा वाले पक्ष पर. निस्संदेह
यह एक खास तरह की हिंसा है, जिसका शिकार सिर्फ स्त्री ही हो सकती है. लेकिन इसके तार बहुत
दूर तक जाते हैं. सिर्फ एक बुरे काम के लिए शैतान अपनी
ऊर्जा क्यों खर्च करेगा? वह जीवन के सभी विभागों
को अपने हाथ में रखना चाहता है और अभी तक तो
इसमें काफी हद तक सफल भी रहा है. बलात्कार के अर्थ का
विस्तार किया जाए तो प्रत्येक ऐसा संबंध बलात्कार है, जिसमें किसी से उसकी इच्छा के विरु द्ध काम
कराया जाता है या किसी की स्वतंत्रता को सीमित किया
जाता है. इस दृष्टि से देखा जाए तो प्राय: सभी व्यवस्थाओं में शोषण या दमन का तत्व होता
है.
मजदूर
से लेकर अफसर तक सभी को ऐसे काम करने पड़ते हैं, जो
वे नहीं करते अगर वे आर्थिक रूप से
आत्मनिर्भर होते. मित्रता को छोड़कर कोई भी संबंध लोकतांत्रिक नहीं होता. एक अफसर होता है और
दूसरा मातहत. अफसरों के ऊपर मंत्री होता है. तमाम
उद्यमों में मालिक राज करता है, वह
अपने अधीनस्थों की राय लेता नहीं है, बल्कि उन्हें आदेश देता है कि क्या-क्या
करना है. इसे बलात्कार की संस्कृति न
कहा जाए, तो और क्या कहा जाए? यह वह व्यवस्था है जिसमें हर स्तर पर विषमता होती है और मजबूत
कमजोर का शोषण या दमन करता है.
यही
शैतानियत स्त्री के मामले में एक अलग रूप ले लेती है. पुरुषों में वर्ग-विभाजन है, लेकिन स्त्री चाहे जिस वर्ग की हो, उसकी हैसियत में फर्क नहीं पड़ता. अब भी भारत सहित अधिकांश देशों
में अधिकांश स्त्रियां आर्थिक दृष्टि से पुरुषों पर
निर्भर हैं. परिवार में हीन स्थिति तो समाज में भी हीन स्थिति. एक की नजर में गाय-बकरी, तो सभी की नजरों में गाय-बकरी. यह स्थिति
बलात्कार को प्रोत्साहित करती है. जहां स्त्री की ओर से प्रतिरोध होता है, उसे
तोड़ने के लिए बलात्कारी हिंसा का सहारा लेता है.
शैतान, शैतान को सहारा देता है. जब से पूंजीवादी
व्यवस्था ने, जो मुनाफे को छोड़कर किसी और देवता को नहीं मानती, अपना सामान बेचने के लिए स्त्री देह का उपयोग करना शुरू किया, तभी से वातावरण में कामुकता का जहर घुलने
लगा है. अब तो यह वीभत्स की
श्रेणी में आ चुका है. फिल्म और टेलीविजन भी स्त्री को ही बेचते हैं. इस तरह, पूंजी के गर्भ से निकला हुआ शैतान हमारे भीतर के शैतान को उत्तेजित करता है. ऐसा
नहीं होता कि कोई उत्तेजक फिल्म देखकर या अश्लील गाना
सुनकर लोग या तो वेश्यालय चले जाते हैं या बलात्कार की तलाश में निकल पड़ते हैं. लेकिन जब पूरे
वातावरण में ही वासना के कीड़े 24X7 बिखेरे
जा रहे हों, तो बलात्कारी
का जन्म अपरिहार्य हो जाता है.
कठोर कानून होने चाहिए. अदालतों
को जल्द से जल्द फैसला देना चाहिए. लेकिन इससे समस्या खत्म नहीं होगी. पश्चिमी देशों में
मुकदमे सालों-साल लटकते
नहीं रहते. फिर वहां बलात्कार क्यों नहीं रुक रहे हैं? समाधान तो एक सभ्य-सुसंस्कृत
समाज बनाना ही है, जिसमें
कोई किसी का गुलाम नहीं होगा और हर स्त्री का एक जैसा सम्मान होगा. बलात्कार की समस्या कोई
यौन समस्या नहीं है, यह सभ्यता की समस्या है. इससे
सभ्यतागत स्तर पर ही निपटा जा सकता है.
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