Sunday, October 10, 2010

अयोध्या विवाद

राम के लिए जगह
राजकिशोर


बचपन से ही मैं नास्तिक हूं। फिर भी राम का व्यक्तित्व मुझे बेहद आकर्षित करता रहा है। वैसे, हिन्दू संस्कारों में पले बच्चे के लिए मिथकीय दुनिया में चुनने के लिए होता ही कितना है? राममनोहर लोहिया ने राम, कृष्ण और शिव की चर्चा कर एक तरह से महानायकों की ओर संकेत कर दिया है। पूजने वाले गणेश, लक्ष्मी और हनुमान को भी पूजते हैं। पर राम, कृष्ण और शिव की मोहिनी ही अलग है। इनकी मूर्ति जन-जन के मन में समाई हुई है। मैं अपने को इस जन का ही एक सदस्य मानता हूं। सीता का परित्याग और शंबूक की हत्या, ये दो ऐसे प्रकरण हैं, जो न होते, तो राम की स्वीकार्यता और बढ़ जाती। लेकिन इधर मेरा मत यह बना है कि महापुरुषों का मूल्यांकन उनकी कमियों के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी श्रेष्ठताओं के आधार पर किया जाना चाहिए। मैं तो कहूंगा, अपने परिवार और साथ के लोगों के प्रति भी हमें यही दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। दूसरों की बुराइयों और कमियों में रस लेना मानसिक रुग्णता है।

राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन का मैं शुरू से ही आलोचक रहा हूं। बहुतों की तरह, मेरा खयाल यही रहा है कि यह आंदोलन जिस तरह चलाया गया, उससे राम का कद नीचा हुआ है और भारतीय समाज में एक व्यर्थ का द्वंद्व पैदा हुआ है। राम ने उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ा था, इस आंदोलन ने उत्तर भारत को ही विभाजित कर दिया। अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में कानून के स्तर पर जो भी त्रुटियां और कमियां हों, इस फैसले का मैं स्वागत करता हूं। जो लोग अपील करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना चाहते हैं, उनसे मैं निवेदन ही कर सकता हूं कि वे ऐसा न करें। साठ साल पुराने इस विवाद का एक तरह से पंचायती निपटारा कर दिया है। अब इस विवाद की उम्र बढ़ाना देश हित में नहीं है। यह सच है कि हर पंचायती निपटारा पूरी तरह न्यायसंगत नहीं होता, पर उसे शांति और सामंजस्य के व्यापक हित में सभी पक्षों द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है। मुसलमानों के सामने और भी बड़ी-बड़ी समस्याएं हैं। बाबरी मस्जिद के घाव को सीने से लगाए रख कर वे अपना ही नुकसान करेंगे। बल्कि मैं तो यहां तक चाहता हूं कि जो एक-तिहाई जमीन मुसलमानों को मिली है, उसे भी वे हिंदुओं को दे दें। इससे भारत ही नहीं, दुनिया भर में उनकी उदारता का डंका बजने लगेगा।

यह मैं इसलिए चाहता हूं कि उच्च न्यायालय द्वारा वितरित जमीन का उपयोग क्या होगा, यह अब चिंता का भारी विषय है। अगर मुसलमानों को आवंटित जमीन का इस्तेमाल वहां मस्दिद बनाने के लिए या इस्लाम की किसी अन्य गतिविधि के लिए किया जाता है, तो पुराने विवाद की मियाद और बढ़ जाएगी। इससे हिन्दू-मुस्लिम विवाद का एक आधार हमेशा बना रहेगा, जो किसी तरह से

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