Sunday, March 30, 2008

नाशुक्रे नायपॉल

क्योंकि सर विदिया हैं ही ऐसे
राजकिशोर
सर विदिया नायपॉल के बारे में जब यह खबर पढ़ी कि उन्होंने अपनी पहली पत्नी के साथ बेहद क्रूर व्यवहार किया था, अपनी महिला मित्र से पच्चीस साल तक संबंध रखने के बाद उसे अचानक त्याग दिया था और वे लगातार वेश्यागमन करते रहे, तो मैं यह नहीं कहूंगा कि मुझे सहसा विश्वास नहीं हुआ। सच तो यह है कि मुझे तुरंत विश्वास हो गया, क्योंकि मुझे लगता है कि अब मैं लेखकों के मन को थोड़ा पहचानने लगा हूं। मुझे तो यह भी लगता है कि हो सकता है कि नायपॉल ने अपने प्रेम या यौन जीवन के बारे में अभी भी सब कुछ न बताया हो। उनकी अधिकृत जीवनी में उतना ही आ सकता था जितना नायपॉल चाहते थे कि आए। आखिर यह उनकी अधिकृत जीवनी है। लेखक ने यह जीवनी लिखने के लिए बहुत शोध किया है, लेकिन अगर शोध के कुछ नतीजे ऐसे थे जो सर विदिया का नुकसान कर सकते थे, तो उन्हें शामिल करने की अनुमति कैसे मिल सकती थी? किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पहले उसका पूरा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।

सर विदिया नायपॉल अंग्रेजी के शीर्षस्थ गद्यकारों में एक माने जाते हैं। यह शिकायत आम है कि उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलने में देर हुई। बहुत दिनों से वे साहित्य लिखना बंद कर चुके हैं। अब वे यात्रा वृत्तांत लिखते हैं और चाहते हैं कि इन्हंो भी महत्वपूर्ण माना जाए। यह मेरा दुर्भाग्य है कि उनका लेखन मुझे कभी पसंद नहीं आया। भारत के बारे में उनके दोनों वृत्तांत वाहियात है। इन वृत्तांतों में उन्होंने भारतीयों को आघात देने के लिए कुछ सतही बातें खोजी और कही हैं। मैं नहीं समझता कि उनके जैसा कोई और विजन-विहीन लेखक है जिसे नोबेल पुरस्कार मिला हो। जिस तरह चमत्कार दिखाने भर से कोई व्यक्ति संत नहीं हो जाता, उसी तरह चौंकानेवाले तथा स्मार्ट वाक्य लिख या बोल कर कोई महान लेखक नहीं हो जाता। पिछली बार जब सर विदिया भारत आए थे, तो उन्होंने भारत की श्रेष्ठ लेखिका नयनतारा सहगल के साथ दुर्व्यवहार कर यह साबित कर दिया था कि उनकी आचरण संहिता में असभ्यता के अनेक तत्व हैं।

इसलिए यह अपेक्षित ही था कि उनका निजी जीवन भी कुछ ऐसा नहीं होगा जिसे आदर्श के रूप में अपनाया जा सके। इस जीवनी से एक और बात सामने आई है, जिसकी चर्चा नहीं हो पाई है। नॉयपॉल को अपने मित्रों को खोते जाने की खब्त है। किसी से भी उनकी दोस्ती ज्यादा दिन नहीं टिकती। यही कारण है कि जब उनकी पत्नी पेट्रीशिया का अंतिम संस्कार हुआ, तो मित्रों और परिचितों की उपस्थिति बहुत क्षीण थी। कल्पना की जा सकती है कि इसके पीछे नॉयपॉल के स्वभाव की कौन-सी विशेषताएं यानी रुग्णताएं रही होंगी। क्या यही रुग्णताएं उनके प्रेम जीवन में भी मौजूद रही हैं? नॉयपॉल की प्रेमिका, जिसे अंग्रेजी में पता नहीं क्यों रखैल (मिस्ट्रेस) बताया जाता है, मार्गरेट यद्यपि नॉयपॉल के साथ बिताए गए दिनों को बड़े लाड़ से याद करती हैं, लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि सर विदिया के लिए औरतों के दो ही इस्तेमाल हैं -- एक, उनके यौन खालीपन को भरना और दो, उनके लिए तरह-तरह के काम करना। स्त्री को पूर्ण मनुष्य मानने और उसके साथ दोस्ताना व्यवहार करना उनके लिए संभव नहीं था। लेकिन पुरुषों के साथ भी उनका व्यवहार क्या ऐसा ही नहीं था? जब आप मान लेते हैं कि आप साध्य हैं तथा अन्य सभी लोग सिर्फ साधन, तो आपकी जीवन कथा कुछ ऐसी ही होगी।

जो लोग नायपॉल को बड़ा लेखक मानते हैं, उन्हें इन नई सूचनाओं ने स्तब्ध कर दिया है। उनकी नजर में नायपॉल अब एक बाजारू आदमी हैं। लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। हम ऐसे सैकड़ों लेखकों को -- और कुछ लेखिकाओं को भी -- जानते हैं, जिन्होंने उच्च कोटि का साहित्य लिखा है, लेकिन जीवन ऐसा जिया जिसे हरामीपन से भरा हुआ कहा जा सकता है। सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है। इस पर गहन मनोवैज्ञानिक शोध की जरूरत है, ताकि मानव मन की गतियों को कुछ और अच्छी तरह समझा जा सके। लेखक ही नहीं, अधिकांश जीनियस ऐसे ही पाए जाते हैं। यहां तक कि बड़े-बड़े संत और दार्शनिक भी। शायद वे अपने आपको इतना विशिष्ट मान बैठते हैं कि उनके निकट दूसरे व्यक्तियों की कोई अहमियत नहीं रह जाती। अगर नैतिकता-निरपेक्ष हो जाना ही जीनियस होने का लक्षण है, तो मेरी तरह आप भी मानेंगे कि दुनिया में जीनियस न ही पैदा हों, यही बेहतर है। लेकिन नहीं, सभी जीनियस ऐसे नहीं होते। उदाहरण के लिए, गांधी किसी से छोटे जीनियस नहीं थे। लेकिन उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन के साथ-साथ अपने निजी जीवन को भी पित्र बनाने की पूरी कोशिश की। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ भी ऐसे ही थे। वे जितनी स्त्रियों की ओर आकर्षित हुए, उससे अधिक स्त्रियां उनकी ओर आकर्षित हुईं। लेकिन ऐसा कोई किस्सा नहीं मिलता जिससे यह माना जा सके कि उन्होंने किसी को अपना शिकार बनाया या किसी के साथ विश्वासघात किया। ये वे महापुरुष हैं जिनके विचार, लेखन और आचरण में संगति मिलती है। कहा जा सकता है कि इस तरह के लेखकों, विचारकों और समाज सेवियों का अवदान ज्यादा गहरा और निर्माणकारी है। व्यक्तित्व की अन्विति के बिना कोई बड़ा काम नहीं हो सकता। यह नहीं हो सकता कि आप रातें तो लाल इलाकों में बिताएं और दिन में क्रांति की तैयारी करें। एक दूसरा पहलू उन लेखकों या संतों का है जो फिसल गए। फिसलन एक मानवीय व्यापार है। फिसल कोई भी सकता है। यह भी संभव है कि किसी लेखक ने अपने साहित्य में उच्चतम कसौटियों का निर्माण किया, पर वह स्वयं उन कसौटियों पर खरा नहीं उतर सका। तॉल्सतॉय ऐसे ही एक जीनियस लेखक थे। वे दिन भर ब्रह्मचर्य की शपथ लेते थे और रात उतरते ही उन पर वासना सवार हो जाती थी। ऐसे सभी मनीषियों ने, जिनमें गांधी भी शामिल हैं, बाद में अपनी विच्युतियों पर गहरा अनुताप प्रगट किया है। लेकिन नायपॉल जैसे लेखकों को अपने इस तरह के अतीत पर गरूर होता है। वे सोचते हैं कि उन्होंने जो कुछ किया, वह उनका अधिकार था। ऐसी घटनाओं का सबसे बुरा नतीजा यह होता है, जैसा कि सुदर्शन की कहानी 'हार की जीत' में बाबा खड्ग सिंह को कहते हैं, लोग प्रतिभाओं के चरित्र पर भरोसा करना ही छोड़ देते हैं। पंडिता रमाबाई ने स्त्रियों को सलाह दी थी कि उन्हें बाबाओं और धर्मगुरुओं के पास नहीं जाना चाहिए और एकांत में तो उनसे मिलना ही नहीं चाहिए। आज भी यह सलाह बेखटके दी जा सकती है, क्योंकि दुनिया नामक इस जंगल में कौन-सा पशु किस पशु की खाल ओढ़ कर घूम रहा है, यह जानना बहुत कठिन है। नायपॉल से संबंधित उद्घाटनों ने इस सचाई की पुष्टि ही की है।

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