Saturday, February 25, 2012

स्वस्थ भारत बीमार भारत

राजकिशोर

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को उन देशों की सूची से निकाल दिया है जहाँ पोलियो अभी तक मौजूद है। पिछले साल भर में पोलियो का एक भी मामला सामने नहीं आया। अगर अगले साल भी पोलियो का कोई भी मामला सामने नहीं आया, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत को पोलियो-मुक्त देश घोषित कर देगा। इसके बाद पाकिस्तान और नाइजीरिया, दो ऐसे देश रह जाएँगे जहाँ पोलियो बचा रह जाएगा।  विश्व स्वास्थ्य संगठन, रोटरी इंटरनेशनल, यूनिसेफ तथा कई अन्य संगठनों और कुछ सरकारों द्वारा पोलियो के विरुद्ध वर्तमान अभियान इसी तरह जारी रहा, तो उम्मीद की जा सकती है कि अगले कुछ वर्षों में पूरी दुनिया पोलियो के कीटाणुओं से मुक्त हो जाएगी।
          पोलियो दूसरी भयंकर बीमारी है जिससे धरती को निजात मिलने जा रही है। इसके पहले चेचक को अलविदा कहा जा चुका है। पोलियो और चेचक, दोनों ही खतरनाक बीमारियाँ हैं जिनसे अब तक करोड़ों क्या, अरबों लोग मर चुके हैं या विकलांग हो चुके हैं। चेचक ने कई सौ सालों तक यूरोप में तूफान बरपा कर रखा था। वहाँ के कई राजा-रानी तक चेचक के शिकार हो कर मर गए। अंग्रेजों के भारत में आने के बाद चेचक का संक्रमण यहाँ भी बड़े पैमाने पर हुआ। लेकिन मानवता के सम्मिलित प्रयास से चेचक अब इतिहास की वस्तु बन चुका है। महामारी के रूप में प्लेग और हैजे का भी लगभग खात्मा हो चुका है। बेशक एड्स नामक अब तक की सबसे भयावह संक्रामक बीमारी  का खतरा दुनिया भर में बढ़ता जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिक इस मोर्चे पर भी सघन प्रयास कर रहे हैं कि इससे बचने का कोई सक्षम तरीका निकल आए। बीमारियों से लड़ने के विश्वव्यापी इतिहास को देखते हुए हमें आशावादी होने का पूरा अधिकार है।
          लेकिन आशावाद की भी एक सीमा होती है। कल अगर एड्स का टीका निकल आता है, तो समस्या सिर्फ यह रह जाएगी कि किस तरह विश्व की पूरी आबादी को या उस आबादी को जिसके एड्स द्वारा संक्रमित हो जाने का खतरा है, यह टीका लगा दिया जाए। इसके लिए पैसा और कार्यकर्ता जुटाने में परेशानी नहीं होगी, जैसा कि चेचक और पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के दौरान पाया गया। लेकिन ये वे बीमारियाँ हैं जो संक्रमण से होती हैं और संक्रमण के लिए राष्ट्रों की सीमाओं का कोई मतलब नहीं है। जब तक धरती के एक भी हिस्से में पोलियो के कीटाणु  सक्रिय हैं, तब तक दुनिया के हर देश में उनके संक्रमण का खतरा मौजूद है। पश्चिम ने बहुत पहले ही चेचक और पोलियो से मुक्ति पा ली थी, लेकिन उसे डर था कि दूसरे देशों में जब तक ये बीमारियाँ रहेंगी, वह स्वयं भी सुरक्षित नहीं है। इसलिए उसकी संस्थाओं और सरकारों ने इन बीमारियों को जड़ से मिटा देने का बीड़ा उठाया और इसमें सफलता हासिल की। एड्स के साथ भी यही होगा। पर इससे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे एशियाई देश तथा अफ्रीका के तमाम देश बीमारी-मुक्त नहीं हो जाएँगे, जहाँ की अधिकांश गरीब आबादी उन बीमारियों से ग्रस्त रहती है जिनका संबंध गरीबी, अज्ञान और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से है। विश्व गरीबी और विश्व बीमारी, दोनों के बीच बहुत घनिष्ठ रिश्ता है।
          इस रिश्ते को हम अपने देश में बहुत अच्छी तरह पहचान सकते हैं। कल ही यूनिसेफ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट आई कि दुनिया भर में जो लोग खुले में शौच करते हैं, उनमें भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा है। यहाँ के लगभग 58 प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं (चीन में सिर्फ पाँच प्रतिशत, पाकिस्तान और इथिओपिया में सिर्फ साढ़े चार प्रतिशत), जिससे अनेक बीमारियों के संक्रमण का खतरा बना रहता है। केंद्रीय सरकार लगभग एक दशक से सब के लिए शौचालय का कार्यक्रम चला रही है, इसके बाद यह स्थिति है। इस दर से प्रत्येक घर में शौचालय होने का लक्ष्य प्राप्त करने में हमें पता नहीं कितने दशक लग जाएँगे।  
          यही, बल्कि इससे ज्यादा बुरी स्थिति पीने का साफ पानी  मुहैया करने की है। सभी जानते हैं कि प्रदूषित जल के उपयोग से बहुत सारी बीमारियाँ होती हैं। पीलिया, डायरिया और टायफायड से अब भी हर साल लाखों भारतीयों की – खासकर बच्चों की – मृत्यु होती है। कुपोषण से होनेवाली बीमारियों की कोई सीमा नहीं है। स्वास्थ्य सुविधाएँ उचित समय पर प्राप्त न होने से भी लाखों भारतीय हर सास बेमौत मारे जाते हैं। प्रसव कोई बीमारी नहीं है – यह एक सामान्य स्थिति है। लेकिन प्रसव के दौरान या प्रसव के कारण मरनेवाली महिलाओं की संख्या के मामले में भारत बहुत आगे है।
          इसलिए चेचक-मुक्त या पोलियो-मुक्त या कुछ वर्षों में संभव दिख रहे कोढ़-मुक्त भारत को हम स्वस्थ भारत का प्रतीक नहीं मान सकते। टीका लगा कर हम मलेरिया, टीबी, टायफायड, डायरिया, हैजा आदि से देश को राहत नहीं दिला सकते। अगर इनका टीका निकल भी आए, तो कुपोषण या अपर्याप्त आहार का क्या करेंगे जिनसे तरह-तरह की बीमारियों का खतरा बना रहता है शहरी और ग्रामीण, दोनों तरह की आबादी में मधुमेह और रक्तचाप बड़ी तेजी से फैल रहे हैं जिनका मुख्य कारण जीवन में बढ़ता हुआ तनाव है। तनाव की समस्या नई जीवन स्थितियों से पैदा हो रही है जिनके केंद्र में असुरक्षा की भावना है। तथाकथित सुखी और संपन्न लोग भी भयंकर तनाव में जी रहे हैं, क्योंकि जीने और काम करने के वर्तमान वातावरण में कहीं किसी तरह का सकून नहीं है। भारत आज कई गंभीर अर्थों में एक बीमार देश है।
          जाहिर है, इसके लिए हमारे सार्वजनिक जीवन की वह व्यवस्था जिम्मेदार है जिसके मन में स्वस्थ भारत की कोई कल्पना ही नहीं है। वह न शारीरिक बीमारियों से लड़ना चाहती है न मानसिक बीमारियों से। रोज ही विकास दर के बारे में दावे किए जाते हैं या चिंता जताई जाती है, पर रोगमुक्त या स्वस्थ भारत का नाम किसी नेता, मंत्री, उद्योगपति या विचारक की जबान पर नहीं आता।    

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