Monday, April 7, 2008

करीना कपूर के बहाने

ब्यूटी की ड्यूटी

राजकिशोर

राजेंद्र यादव को स्त्रीत्व और सुंदरता का विशेषज्ञ माना जाता है। मैं यह नहीं कहूंगा कि यह स्त्रीत्व और सुंदरता, दोनों के साथ अन्याय है। बहुत-से लोग ऐसा मानते हैं। मेरा खयाल है, इसके पीछे द्वेष नामक मनोभाव की निर्णायक भूमिका है। इस कोटि का द्वेष एक अन्य महत्वपूर्ण लेखक-विचारक अशोक वाजपेयी के प्रति भी दिखाई पड़ता है। सफलता किसी भी तरह की हो, वह अपने आसपास कुछ जलन जरूर पैदा करती है। लेकिन सिर्फ इसीलिए किसी ऐसे बुद्धिजीवी की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए जो अपने समय के प्रश्नों के साथ निरंतर टकरा रहा हो और हर विषय में अपना एक मत रखता हो। मत की स्वतंत्रता के युग में भारत जैसे कुछ ही देश हैं जहां मत-विभिन्नता इतनी कम है और असहमति जताने वाले समूह भी सिर्फ सहमति बर्दाश्त करते हैं तथा इसी आधार पर दोस्तों-दुश्मनों की सूची बनाते रहते हैं। यही कारण है कि किसी सुस्थापित लेखक के विचारों पर निष्पक्ष बहस नहीं हो पाती। लोग तुरंत दो और दो चार करने लगते हैं कि ऐसा करनेवाला व्यक्ति फेंस के इधर है या उधर। यहां तक कि वे लेखक भी, जिनके विचारों पर विचार होता है।

अब यही देखिए कि मुझे राजेंद्र यादव की 2005 की डायरी के एक पन्ने पर (हंस, अप्रैल 2008) की गई स्थापना का प्रतिवाद करने की जबरदस्त इच्छा हो रही है, लेकिन डर भी लग रहा है कि कहीं इसे यादव-विरोधियों की नियमित कार्रवाइयों में शामिल कर लिया जाए। यह जोखिम उठा कर भी मैं कहना चाहता हूं कि करीना कपूर की सुंदरता या आकर्षकता के निमित्त से उन्होंने सुंदरता का जो विवेचन किया है, वह कायल करनेवाला नहीं है। कहीं से भी। वे कहते हैं, 'जो लड़की आपको सुंदर लगे, उसमें आप पवित्रता, दिव्यता, नम्रता और शालीनता सभी कुछ आरोपित कर लेते हैं। इसलिए जब वह कमर, कूल्हे या नितंब मटका कर नाचती है, या फूहड़ ढंग से शरीर प्रदर्शन करती है, तो मन को धक्का लगता है।'

प्रस्ताव यह है कि हमें धक्का नहीं लगना चाहिए, क्योंकि 'क्या जरूरी है कि जो सुंदर है वह निष्पाप, शाश्वत और पवित्र भी हो? क्यों वहां करुणा, ईमानदारी, हमदर्दी सभी कुछ होंगे? क्या खूबसूरत बिल्ली भी उतनी ही खूंखार नहीं होगी जितनी वह जो वैसी नहीं है?' मुझे लगता है कि खूबसूरत बिल्ली का खयाल 'हंस' संपादक को गलत लाइन पर ले गया। बिल्ली चाहे असुंदर हो या सुंदर, वह रहेगी बिल्ली ही। अगर बिल्लियां आम तौर पर खूंखार होती हैं, तो सभी बिल्लियां ऐसी ही होंगी। मुझे बिल्ली कभी खूंखार जानवर नहीं लगी। रघुवीर सहाय बिल्लियां ही पालते थे। उन्होंने लिख कर बताया है कि बिल्ली उन्हें इसलिए पसंद है क्योंकि वह स्वाभिमानी होती है और पोस नहीं मानती। बिल्ली के इस स्वभाव में रघुवीर जी एक सुंदरता देख रहे थे। यह सुंदरता है या नहीं, इसे थोड़ी देर के लिए परे रख कर हम यह सोच सकते हैं कि आदमी बिल्ली नहीं है। बिल्लियों के इतिहास में औपनिषदिक ऋषि, गौतम बुद्ध, भगवान महावीर ईसा मसीह, कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी आदि नहीं पैदा हुए। इसीलिए वे आज भी बिल्लियां ही हैं, जबकि आदमी नामक प्रजाति में लाखों वर्षों के चिंतन-मनन और प्रयोगशीलता के कारण बड़े परिवर्तन गए हैं। मनुष्य का मूल स्वभाव शायद ज्यादा बदला हो, जैसा कि नृतत्वशास्त्री, जंतुविज्ञानी, मनःशास्त्री आदि बताते रहते हैं, फिर भी इक्कीसवीं सदी के मनुष्य की कोई तुलना पाषाण काल के व्यक्ति से नहीं की जा सकती। संस्कृति ने प्रकृति में भारी पैमाने पर हस्तक्षेप किया है और इसके ठोस नतीजे निकले हैं।

बुद्धिमानों का कहना है कि हर स्त्री सुंदर होती है, कुछ स्त्रियां ज्यादा सुंदर होती हैं, बस। यह एक डिप्लोमेटिक वक्तव्य है, फिर भी इसे मान कर चलने में कोई हर्ज नहीं है। इसमें भी यह निहित है कि जो स्त्रियां ज्यादा सुंदर हैं, उनमें कुछ अतिरिक्त है। यह अतिरिक्तता लगभग उसी कोटि की है जैसी विद्वान, कवि, साधु, समाजसेवी आदि व्यक्तियों में देखी जाती है। विद्वत्ता, कवित्व, साधुत्व आदि अर्जित किए जाते हैं, लेकिन हर व्यक्ति विद्वान या लेखक नहीं हो सकता। सभी व्यक्तियों में सभी तरह के गुण जन्म से ही अंतर्निहित होते हैं, लेकिन कुछ व्यक्तियों में कुछ खास गुण परिस्थिति विशेष के कारण ही फूलते-फलते हैं। कुछ प्रकृति की देन, कुछ समाज का अवदान और कुछ निजी तपस्या -- इन सबके संयोग से कुछ व्यक्ति अतिरिक्त योग्यता या गुण धारी हो जाते हैं। सुंदरता भी ऐसी ही नियामत है। इसमें भी प्रकृति, समाज और निजी उद्यम, सभी का योगदान होता है। बहुत-सी बालिकाएं राजेंद्र यादव की पहली पसंद करीना कपूर से भी ज्यादा नमक लिए हुए पैदा होती हैं, पर उनकी गरीबी, अशिक्षा और उनके साथ होनेवाला सलूक कुछ ही वर्षों में उनका कचूमर निकाल देता है। कुछ सुंदरताएं संपन्न परिवारों में जन्म लेती हैं, पर लालन-पालन की गड़बड़ियों और अपनी लापरवाहियों के कारण वे जल्द ही नयनाभिराम नहीं रह जातींं। इसके विपरीत कम सुंदरता के साथ पैदा होनेवाली अनेक स्त्रियां अपने को नित्य आकर्षक बनाए रखती हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि जिस व्यक्ति में भी कुछ अतिरिक्त है, उस पर अकेले उसका अधिकार नहीं है उसमें प्रकृति का और उससे अधिक समाज का अवदान है।

इसीलिए इस अतिरिक्त विशेषता या गुण की कुछ सामाजिक जिम्मेदारी भी होती है। अगर कोई वैज्ञानिक अपने ज्ञान का उपयोग संहारक हथियार बनाने, घातक रसायन तैयार करने आदि में करता है, तो क्या यह ठीक है? अगर कोई कवि अपनी काव्य प्रतिभा का उपयोग सांप्रदायिक या फासीवादी वातावरण बनाने के लिए करता है, तब भी वह सम्माननीय है? इसी तरह कोई सुंदरी अपनी सुंदरता का उपयोग लोगों को ठगने में, उन्हें उल्लू बनाने में करती है, तो क्या यह कहा जाएगा कि इसमें हर्ज क्या है? अगर पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसे प्रोफेशन स्वीकार नहीं करेंगे जो अनीति को प्रोत्साहित करते हों, तो स्त्रियों से भी यह अपेक्षा होगी कि वे कमर मटका कर समाज में अपसंस्कृति फैलाएं। जितनी अधिक शक्ति, उतनी ही ज्यादा जिम्मेदारी -- सामाजिकता की मांग यही है। सच तो यह है कि पवित्रता, दिव्यता, ईमानदारी, करुणा, नम्रता, शालीनता आदि गुणों की अपेक्षा सभी से की जाती है, क्योंकि यही विकसित होने के लक्षण हंै और इसी तर्क से यह अपेक्षा उन व्यक्तियों से ज्यादा की जाती है, जिनमें कुछ अतिरिक्त गुण या खूबी है, जैसे ज्ञान और सौंदर्य। किसी सुंदर और शिक्षित महिला को डॉन या ठग साध्वी के रूप में देख कर हमें धक्का क्यों नहीं लगना चाहिए? 000

5 comments:

note pad said...

राजकिशोर जी यह ज़रूर देखिये -"पुड़िया भीतर पुड़िया "http://hashiya.blogspot.com/2008/04/blog-post.html
इसे चोखेर बाली यानी sandoftheeye.blogspot.com पर भी उठाने वाली हूँ ।
सुजाता

Ashish Maharishi said...

राज किशोर जी किसने कह दिया कि राजेंद्र यादव को स्त्रीत्व और सुंदरता का विशेषज्ञ माना जाता है। पत्रकारिता में तो उन्‍हें कुछ और ही बोला जाता है जिसके बारें में यहां नहीं कहा जाए तो अच्‍छा है

Anonymous said...

Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Fragmentadora de Papel, I hope you enjoy. The address is http://fragmentadora-de-papel.blogspot.com. A hug.

Anshu Mali Rastogi said...

राजेंद्र यादव के पास अब न लिखने को कुछ बचा है न कहने को। फिर उन्हें करीना के चेहरे पर मस्ती और नमक ही दिखाई देगा। ये बूढ़ी हो चुकी पीढ़ी है जिसे दूध में पड़ी मक्खी समझकर बाहर निकाल फेंकना चाहिए।

Anonymous said...

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- Murk