सिस्टम फेल्योर
राजकिशोर
एक सौ पचास साल की होने जा रही कांग्रेस पार्टी के सामान्य ज्ञान का स्तर देख कर न ताज्जुब होता है न हंसी आती है। इस पार्टी ने हमेशा बड़े सवालों के छोटे जवाब दिए हैं या चुप्पी साध रखी है। उदाहरण के लिए, कांग्रेस नेतृत्व ने देश को यह बताना कभी जरूरी नहीं समझा कि उसने भारत विभाजन के प्रस्ताव को क्यों स्वीकार कर लिया था। पंचवर्षीय योजनाओं का प्रारूप बनाते समय कभी यह बात साफ नहीं की गई कि कितने समय में सभी बच्चों को शिक्षा और सभी नागरिकों को चिकित्सा की सुविधा देने का लक्ष्य है। इंदिरा गांधी ने कभी देश से यह शेयर नहीं किया कि इमरजेंसी लगाना क्यों जरूरी हो गया था, न ही यह स्पष्ट किया कि क्यों अकाल तख्त पर सैनिक कार्रवाई किए बिना कोई चारा रह गया था। बोफोर्स कांड के बाद उस समय के प्रधानमंत्री ने, जो शक के घेरे में सबसे ज्यादा थे, संसद में जा कर कहा कि मैं कसम खा कर कहता हूं कि इस घोटाले में मेरा या मेरे परिवार के किसी भी सदस्य का हाथ नहीं है। तब से बीस वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है और कांग्रेस यह बताने में असमर्थ है कि राजीव गांधी और उनके परिवार के सदस्यों का हाथ नहीं था तो किसका हाथ था।
अब कांग्रेस का एक प्रवक्ता कह रहा है कि वारेन एंडरसन के भारत से सुरक्षित भाग जाने के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है - यह तो सिस्टम का फेल्योर था। मुझे पता नहीं कि यह प्रवक्ता कितना पढ़ा-लिखा है। मुझे यह भी पता नहीं कि वह सिस्टम के बारे में कितना जानता है। यह मैं अवश्य कह सकता हूं कि वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ही एक नायाब उक्ति को दुहरा रहा था। जब हजारों करोड़ रुपयों का प्रतिभूति घोटाला हुआ था, तब मनमोहन सिंह ने, जो उस समय वित्त मंत्री थे, बहुत सोचने-विचारने के बाद देश को यह सूचित किया था कि इस घोटाले के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है, यह तो सिस्टम का फेल्योर था। इसी तर्क से क्या एंडरसन यह दावा नहीं कर सकता कि भोपाल गैस कांड भी सिस्टम फेल्योर का एक उदाहरण था -- उसके लिए किसी एक को सजा नहीं दी जा सकती? भारतीय अभियुक्तों को दो वर्ष के कारावास की सजा, जिसके पीछे सर्वोच्च न्यायालय का एक अजीब-सा निर्देश था, के बारे में भी यह टिप्पणी की जा सकती है कि इसके लिए किसी एक जज या न्यायालय को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता - यह तो न्यायपालिका के टोटल सिस्टम का फेल्योर था।
सिस्टम फेल्योर एक बहुत ही गंभीर मामला है। इसका मतलब यह है कि पूरा सिस्टम नाकारा हो चुका है और उसका कोई भी हिस्सा अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है। वारेन एंडरसन के मामले में हम पाते हैं कि उसे बचाने के लिए पूरा सिस्टम कितनी सक्रियता से काम कर रहा था। एंडरसन को पता था कि अगर वह भोपाल में यूनियन कारबाइड के कारखाने के आसपास भी फटका, तो जनता उसकी बोटी-बोटी नोच डालेगी। इसीलिए उसने भारत सरकार से यह आश्वासन मांगा कि उसे सुरक्षित वापस आने दिया जाएगा। कायदे से सरकारी प्रतिनिधि को कहना चाहिए था कि आपकी सुरक्षा की गारंटी हम नहीं ले सकते, बल्कि आपको यहां गिरफ्तार किया जा सकता है। लेकिन सिस्टम उलटी तरह से काम कर रहा था। एंडरसन भोपाल आया, उसे गिरफ्तार किया गया, पर उसका पासपोर्ट जब्त नहीं किया गया, कुछ ही घंटों में अदालत ने उसे जमानत दे दी - बिना यह शर्त लगाए कि वह अदालत की अनुमति के बिना भारत नहीं छोड़ेगा और राज्य सरकार ने दामाद की तरह खातिर करते हुए उसे दिल्ली पहुंचा दिया, जहां से वह अपने देश अमेरिका भाग निकला।
क्या यह सिस्टम फेल्योर था? या सिस्टम की अति सक्रियता थी? सिस्टम में अगर कोई दम नहीं रह गया था, वह पूरी तरह से चरमरा चुका था, तो किसी न किसी बिंदु पर एंडर्सन का सुरक्षा चक्र टूट जाना चाहिए था। या एंडर्सन को सुरक्षित वापस जाने देने के लिए मुख्यमंत्री से सचिव तक विभिन्न व्यक्तियों को दस-बीस करोड़ की रिश्वत वसूल कर लेनी चाहिए थी। आम नागरिक की स्थिति यह है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को पुलिस के कब्जे से छुड़ाने के लिए दो-चार हजार खर्च करना पड़ जाता है। यह तो एक महादोषी का मामला था, जिसके सावधानी से काम न करने के परिणामस्वरूप बीस हजार लोगों की जान चली गई थी। फिर इसे सिस्टम फेल्योर का नाम कैसे दिया जा सकता है?
जो सिस्टम एंडरसन की सुरक्षा के लिए इतना तत्पर और चुस्त था, वह अभी तक भोपाल के गैस पीड़ितों को न तो उचित मुआवजा दे पाया है न ही उनका पुनर्वास कर पाया है। यहां तक कि यूनियन कार्बाइड के कारखाने में जमा संदूषक रासायनिक कचरे को भी नहीं हटा पाया है। क्या यह सिस्टम फेल्योर है? कोई भी देख सकता है कि यह सिस्टम की क्रूरता है। सिस्टम को एक व्यक्ति की इतनी चिंता थी कि उसे खरोंच तक नहीं लगनी चाहिए, क्योंकि वह अमीर अमेरिका का अमीर नागरिक था, पर इसकी कोई परवाह नहीं रही है कि गैस कांड के पीड़ित लोगों का समुचित इलाज कराया जाए और उन्हें न्याय के लिए दर-दर भटकना न पड़े, क्योंकि ये निर्धन, असहाय लोग हैं और इनका जीना-मरना बराबर है। यानी सिस्टम पूरी तरह से सजग है कि किसी पीड़ित व्यक्ति को न्याय न मिलने पाए। राजीव गांधी के जमाने से ही कोशिश की जा रही है कि उद्योगपतियों और व्यवसायियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वन विनडो प्रणाली हो यानी एक ही दफ्तर में उनकी सारी जरूरतें पूरी हो जाएं। क्या ऐसा ही विनडो गैस पीड़ितों के लिए नहीं खोला जा सकता?
हमारा सिस्टम फेल है -- लेकिन सिर्फ गरीबों के मामलों में। अमीरों के मामले में वह बहुत ही कुशल और तेज है। 000
01 जुलाई 2010
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1 comment:
मेरा आग्रह स्वीकार करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
भोपाल गैसकांड में एंडरसन को लेकर अभी तक जो निकलकर आया है उसमें तत्कालीन कांग्रेस सरकार(राज्य और केंद्र दोनों) दोषी हैं। गैस कांड से पहले मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एक एनजीओ के नाम पर लाखों रुपये लिए थे। आखिर जिसका पैसा सरकारें खा रही हैं उसके प्रति वफादारी का फर्ज तो बनता है ना। एंडरसन भागा नहीं उसे भगाया गया। यह सिस्टम का फेल्योर नहीं था बल्कि एक रणनीति के तहत एंडरसन को सुरक्षित अमेरिका पहुंचाया गया। सबसे दुख और चिंता की बात यह है कि देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कनाडा में कहते हैं कि एंडरसन के प्रत्यर्पण के लिए प्रयास किया जाएगा। आखिर ये सरकारें किसको बेवकूफ समझ रही हैं। मनमोहन सिंह को अगर गैस पीड़ितों की इतनी ही चिंता थी तो अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से इस बारे में बात कर सकते थे। जब गए तो बात नहीं किए अब कह रहे हैं कि प्रत्यर्पण की कोशिश करेंगे। दरअसल पूरा का पूरा सिस्टम ध्वस्त हो गया है। बस कहने को केंद्र सरकार है, राज्य सरकार है। देश में कानून व्यवस्था है। देश में न्यायपालिका है। सब लूटने में लगे हैं।
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