Tuesday, October 2, 2007

विवाह पर कुछ विचार

विवाह की मीयाद
राजकिशोर

जर्मनी की सबसे चमक-दमक वाली नेता गैब्रील पॉली

ने अपने चुनाव घोषणापत्र में यह प्रस्ताव शामिल कर

हड़कंप मचा दिया है कि विवाह की मीयाद सात वर्ष

होनी चाहिए। सात वर्ष के बाद भी कोई युगल अपने

वैवाहिक संबंध को बनाए रखना चाहता है, तो उसे

इस संबंध की अवधि बढ़ाने की सुविधा मिलनी

चाहिए। पॉली की उम्र पचास वर्ष है। उनका दो बार

तलाक हो चुका है। तलाक के लिए जिम्मेदार कौन

था, नहीं मालूम। इसकी खोज करने की जरूरत भी

नहीं है। हमारे लिए इतना ही काफी है कि गैब्रील

पॉली को भली भांति पता है कि आजकल विवाह

टिकाऊ नहीं होते। उन्हें यह अनुभव भी है कि तलाक

का मामला कितनी बदमजगी का होता है। पहले तो

खुशी-खुशी शादी करो, फिर अदालत के चक्कर लगाते

फिरो कि योर ऑनर, हमें एक-दूसरे से बिछड़ने का

मौका दिया जाए। पॉली को लगता है कि इससे बेहतर

तो यही है कि विवाह की मीयाद शुरू में ही तय कर

दी जाए, जिसके बाद वह स्वत: भंग माना जाएगा।
जर्मनी में और यूरोप के शेष हिस्सों

में राजनेताओं और सामाजिक प्रश्नों पर विचार रखने

वाले कई लोगों ने सात वर्ष के इस प्रस्ताव की हंसी

उड़ाई है, हालांकि वे जानते हैं कि शादी के तीन-चार

वर्ष बाद ही अधिकतर जोड़े तलाकनामा लिए घूमते

नजर आते हैं। इस अतिरंजित प्रतिक्रिया से ऐसा

लगता है कि इस परंपरागत मान्यता से कि विवाह

जीवन भर का सौदा होता है, लोग अभी ऊपर नहीं उठ

पाए हैं। हां, वे यह जरूर मानते हैं कि बीच में ही

अनबन हो गई, तो संबंध विच्छेद की सुविधा होनी

चाहिए। जाहिर है, जर्मनी की इस ओजस्वी महिला

नेता ने कान को दूसरी ओर से पकड़ने की कोशिश की

है। अगर जीवन भर के लिए किया जाने वाला विवाह

बीच में ही तोड़ा जा सकता है, तो शुरू में ही उसकी

अवधि क्यों न तय कर दी जाए, ताकि पति-पत्नी

दोनों चौकन्ना रहें और एक-दूसरे के सामने अपना

सर्वोत्तम पेश करते रहें? प्रेम में हम गुलाम हो जाते हैं

और विवाह के बाद गुलाम बनाने की कोशिश करते

हैं। अपराध और दंड का यह अद्भुत रिश्ता है। होता

यह भी है कि एक बार विवाह हो जाने के बाद दोनों

दंपति एक-दूसरे की ओर से निश्चिंत हो जाते हैं और

वैवाहिक संबंध को लगातार जीवंत तथा सार्थक बनाए

रखने की जरूरत महसूस नहीं करते।
विचारणीय है कि विवाह और रक्त

संबंधों को छोड़ कर और कोई मानव संबंध जीवन भर

के लिए नहीं होता। रक्त संबंधों में हम चुनाव नहीं कर

सकते, पर विवाह एक चयन है। जब दास-दासियां

होती थीं, वे अपने पूरे जीवन के लिए होती थीं।

उनकी मुक्ति का दिन मुकर्रर नहीं किया जाता था।

अब कानूनी रूप से दास व्यवस्था कहीं नहीं है।

आजीवन कैद जरूर दी जाती है, लेकिन वह सजा है।

हम विवाह को सजा नहीं मानते। यह मां द्वारा संतान

को जन्म देने के बाद जीवन का सबसे बड़ा उत्सव है।

वैवाहिक जीवन यह उत्सव मनाते हुए ही गुजार देना

चाहिए। सबसे अच्छा विवाह वही है जो शेष जीवन

को उत्सवमय बनाए रखे और एक-दूसरे की

जिम्मेदारियों के निर्वाह में सहायक बने। जो विवाह

बीच में टूट जाते हैं, वे शायद शुरू से ही त्रुटिपूर्ण होते

हैं। जब तक त्रुटि का पता चलता है, काफी देर हो

चुकी होती है, जिससे अनावश्यक कटुता और तकलीफ

पैदा होती है। इससे बचने का एक व्यावहारिक तरीका

यह है कि विवाह को अनंत न बनाया जाए। कोई भी

चुना हुआ संबंध अनंत नहीं हो सकता और विवाह भी

एक संबंध ही है। बहुत-से लोग अपने तोते या मैने

पर गर्व करते हैं कि उसने पोस मान लिया है। इसकी

असली परीक्षा यह है कि उस तोते या मैने को पिंजरे

से निकाल कर उड़ा दिया जाए। उसके बाद देखना

चाहिए कि वह अपनी खुशी से पिंजरे में वापस

लौटता/लौटती है या नहीं। कुत्तों और घोड़ों के बारे में

जरूर सुना गया है कि उनमें से कई अपने स्वामी की

मृत्यु के बाद खाना-पीना छोड़ देते हैं और आंसू बहाते

हुए प्राण त्याग देते हैं। सती प्रथा का विरोधी होते

हुए भी मैं उस पति या पत्नी की तारीफ ही करूंगा

जिनकी जीने की इच्छा अपने जीवन साथी के गुजर

जाने के बाद खत्म हो जाती है। आदर्श स्थिति शायद

यह न हो, पर प्रेम अपने को किस-किस तरह से

व्यक्त करता है, कौन जानता है!
लेकिन प्रेम है या नहीं, यह जानना ही

सबसे मुश्किल है। अकसर वासना प्रेम की मुलायम

चादर ओढ़ कर अपने को प्रगट करती है। प्रेम निवेदन

करते समय जो याचक नजर आता है, विवाह के बाद

वह शेर हो उठता है। यहां शेर में शेरनी भी शामिल

है। आदमी को जानवर बनने से रोकने के लिए भी

मीयादी विवाह उपयोगी साबित हो सकता है। कुछ

लोग प्रेम को मीयादी बुखार मानते है। यह बुखार

उतर जाने के बाद भी जो संबंध टिका रहे, वही असली

संबंध है। बाकी सब समझौता है। मानवता जितना

आगे बढ़ आई है, उसके बाद भी उसे ं समझौते का

जीवन जीने को बाध्य क्यों करना चाहिए? कुछ

समझदार लोग कह सकते हैं कि सात वर्ष भी क्यों?

कोई जोड़ा जितने वर्षों के लिए निबद्ध होना चाहता है,

उतने ही वर्ष क्यों नहीं? यह प्रश्न भी विचारणीय है।

बहरहाल, विवाह की मीयाद जो भी तय की जाए,

उसके साथ यह शर्त जरूर लगानी चाहिए कि जिस

दंपति को कम से कम बीस साल तक साथ रहना है,

उसे ही बच्चा पैदा करने का अधिकार होगा। तलाक

का सबसे बुरा शिकार बच्चा ही होता है।
इस सिलसिले में अपने मुहल्ले की

एक कामवाली याद आती है। जिस व्यक्ति से उसका

विवाह हुआ था, वह कुपति निकला। उससे

छुट्टा-छुट्टी हो गई। उसके बाद इस युवा काम वाली

की जिंदगी में कई पुरुष आए। पर कोई नहीं टिका।

कोई पैसे ले कर भाग गया, कोई कुछ और। आजकल

वह जिस पुरुष के साथ रहती है, उससे विवाह कर

लेने की सलाह दी गई, तो होशियार काम वाली ने

कहा, ‘ विवाह कर लूंगी, तो वह मुझे नौकरानी

समझने लगेगा। अभी ही ठीक है। वह बदमाशी करेगा,

तो मैं उसे घर से निकाल दूंगी।’
आश्चर्य की बात यह कि जिस सत्य

को एक साधारण काम वाली भी, इतने कम समय में,

समझ गई है, उसे ले कर विद्वानों में इतना मतभेद

नजर आता है।

4 comments:

सुबोध said...

अच्छा लगा पढ़कर

Anonymous said...

दिलचस्प वैचारिक संबंध बनाया है आपने जर्मन नेता और कामवाली में. हमारे यहाँ इश्क़ की रोमानियत भी एक तरह की सांस्कृतिक आदत ही है, जबकि कोई भी संबंध अंततः सत्ता संबंध भी होता है, और उसमें रोज़ाना की खींचतान,हुज्ज्त चलती रहती है - एक-दूसरे को क़ाबू में रखने की सतत जद्दोजहद.

रविकान्त

आशीष कुमार 'अंशु' said...

BLOG PAR AAPAKO DEKHAKAR SUKH MILA>

Anonymous said...

aapke blog ko padh ke, mann me ek halchal si ho rahi hai...dimag ko ek soch mili hai....bahut bahut dhyanyawad mujh ek creative soch dene ki liye