tag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post7794318504172830904..comments2023-07-03T08:37:39.742-07:00Comments on विचारार्थ: गांधीवाद के सवाल -1राजकिशोरhttp://www.blogger.com/profile/07591365278039443852noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-34668091041036331862007-09-24T11:14:00.000-07:002007-09-24T11:14:00.000-07:00आपकी बातों से सहमत हूं। धन्यवाद।आपकी बातों से सहमत हूं। धन्यवाद।राजकिशोरhttps://www.blogger.com/profile/07591365278039443852noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-31459970196929852572007-09-23T02:44:00.000-07:002007-09-23T02:44:00.000-07:00सत्ता के लिए हमेशा सत्य असुविधाजनक और खतरनाक रहा ह...सत्ता के लिए हमेशा सत्य असुविधाजनक और खतरनाक रहा है। इसलिए वह हमेशा से सत्य के लिए मुश्किलें खड़ी करता रहा है। न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार को उजागर करने पर अदालत की अवमानना के आरोप में पत्रकारों को जेल की सजा सुना दी जाती है। खुफिया एजेंसी में भ्रष्टाचार को उजागर करने पर शासकीय गोपनीयता भंग करने के आरोप में सीबीआई के छापे पड़ते हैं। <BR/><BR/>अंग्रेजों के जमाने में भी अहिंसक सत्याग्रह करना उतना मुश्किल नहीं था जितना आज के भारत में हो गया है। सत्याग्रह की आवाज को आज प्रेस भी दबा देती है। दिल्ली में जंतर-मंतर पर सांकेतिक प्रदर्शन करने से अधिक आज देश में कोई सत्याग्रह नहीं कर पाना मुमकिन नहीं। जिन तक आप सत्य की आवाज पहुंचाना चाहते हैं, उनतक सत्य की पुकार पहुंचने के सभी रास्ते बंद हैं। <BR/><BR/>आज प्रेस ही सत्य का गला घोंट रहा है और अदालतें ही न्याय का गला घोंट रही हैं। और रही बात प्रेम की, तो सबको केवल अपने स्वार्थ, महत्वाकांक्षा और लिप्सा से ही प्रेम रह गया है।<BR/><BR/>प्रेम तो दूरी को कम करता है, बड़े-छोटे का अंतर मिटाता है। लेकिन हमारी पूरी सोच, हमारी पूरी मानसिकता पदानुक्रम पर आधारित है, जिसमें हर कोई खुद को दूसरे से बड़ा मानने, बड़ा बनाने में लगा हुआ है। चाहे वह पत्रकार-बुद्धिजीवी हो, साधु-संत हो, नेता-नौकरशाह हो, पूंजीपति-प्रोफेशनल्स हों, या फिर गुंडे-बदमाश हों।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com