tag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post5693784170625950800..comments2023-07-03T08:37:39.742-07:00Comments on विचारार्थ: पूंजीवाद की महिमाराजकिशोरhttp://www.blogger.com/profile/07591365278039443852noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-64692805660772991482008-10-29T10:26:00.000-07:002008-10-29T10:26:00.000-07:00"लेकिन धरती पर अनिल अंबानी या रतन टाटा जैसे समर्थ ..."लेकिन धरती पर अनिल अंबानी या रतन टाटा जैसे समर्थ लोगों की संख्या कितनी है? बाकी लोगों के लिए एक ही विकल्प बचा है कि वे ऐसी अर्शनीतियों का जी-जान से विरोध करें जो हमारे जिंदा रहने के साधनों के मूल्य में अनिश्चितता लाती हैं और ऐसी अर्थनीतियों के पक्ष में काम करें जिनसे जीवन में कुछ निश्चितता, स्थिरता और सुरक्षा आती हो। जीवन होगा मूलत: जुआ, पर हमारा घर, हमारी कमाई, हमारा पेंशन -- सब कुछ जुए पर लगा हुआ हो और यह जुआ हम नहीं, ऐसे लोग खेल रहे हों, जिनका हमारे हिताहित से कोई संबंध नहीं है, यह बात पूरी तरह से समाज और मानव विरोधी है और इसे एक दिन के लिए भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए"<BR/><BR/>बिल्कुल ठीक राज किशोर जी। कुछ लोगों की बेलगाम लालच और आर्थिक अनुशासनहीनता का नतीजा है यह आर्थिक संकट। अब जब ताश का यह महल ढह गया है मलबा हम सब को, जिनका इस संकट को लाने में कोई हाथ नहीं है, उठाना पडेगा। पूँजीवाद की सच्चाई यही है की जब हलवा बंटता है तो केवल टाटा और अम्बानियों को मिलता है पर जूठे पत्तल आम आदमी को उठाने पड़ते हैं। बहुत सारगर्भित आलेख , शुक्रिया।एस. बी. सिंहhttps://www.blogger.com/profile/09126898288010277632noreply@blogger.com