tag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post2669080476936788261..comments2023-07-03T08:37:39.742-07:00Comments on विचारार्थ: राजकिशोरhttp://www.blogger.com/profile/07591365278039443852noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-7654680162818969602010-10-17T11:21:27.266-07:002010-10-17T11:21:27.266-07:00जानबूझकर ठेली गयी हिंगलिश से घृणा सी है !!जानबूझकर ठेली गयी हिंगलिश से घृणा सी है !!प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-26617087434236282812010-10-17T07:12:11.639-07:002010-10-17T07:12:11.639-07:00अभी कुछ दिन पहले की बात है ,एक पढ़े-लिखे सज्जन (हिं...अभी कुछ दिन पहले की बात है ,एक पढ़े-लिखे सज्जन (हिंगलिश प्रजाति के) किसी याचिका के सिलसिले में कोर्ट गए | जब भी जज महोदय कुछ पूछते तो वे 'यस-ऑनर ' या 'जी<br />माई-बाप ' की जगह ' या' , 'या' कहते जा रहे थे | संकर- प्रजाति भाषा का ज्यादा ज्ञान नहीं है | 'या' शब्द शायद इंग्लिश के 'यश' हिंदी के 'हाँ ' से मिलकर बना होगा | खैर ! जज साहब <br />को गुस्सा आ गया ; वे कहने लगे ," यदि तुमने एक बार और 'या','या' कहा तो मैं तुम पर कारवाही करूंगा , इतनी भी तमीज नहीं कि कॉफ़ी-हॉउस और जज से रूबरू होने का फर्क समझ <br />सकें |" कहने का मतलब माननीय न्यालय ने प्रथम-द्रष्टा नकार दिया | वैसे भी बच्चा तभी अच्छा , जब माँ भी अपनी हो और बाप भी अपना ही हो ,नहीं तो नाजयिज-औलाद कहलाती है |<br /> मात्र-भाषा के पक्ष में एक समसामयिक बहुत अच्छा लेख ,बधाई |daddudarshanhttps://www.blogger.com/profile/11283228649319562916noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-62576915782922630832010-10-17T01:07:03.137-07:002010-10-17T01:07:03.137-07:00वर्धा से लौटने के बाद आपको पढ़ने की उत्सुकता था। यह...वर्धा से लौटने के बाद आपको पढ़ने की उत्सुकता था। यह लेख पढ़ने को मिला । अच्छा लगा। टांग तोड़कर बैसाखी की आनिवार्यता महसूस करानी वाली बात बहुत सही कही आपने। <br /><br />अच्छा लगा आपको पढ़ना।अनूप शुक्लhttp://hindini.com/fursatiyanoreply@blogger.com