tag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post8214415100442739816..comments2023-07-03T08:37:39.742-07:00Comments on विचारार्थ: संदर्भ : हिन्दी दिवस 2007राजकिशोरhttp://www.blogger.com/profile/07591365278039443852noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-85214434944280151932007-09-14T12:28:00.000-07:002007-09-14T12:28:00.000-07:00आपकी बात सही है। मूल सवाल हिन्दी का नहीं है। मुद्द...आपकी बात सही है। मूल सवाल हिन्दी का नहीं है। मुद्दा यह है कि सभी भारतीय भाषाओं की कीमत पर अंग्रेजी फैलती जा रही है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि भारत में जन-विरोधी नीतियां चल रही हैं। अंग्रेजी-भाषी वर्ग अभी भी यहां अल्पसंख्यक है और उसके हित बहुसंख्यकों के हितों के विरुद्ध है।<BR/>फिर गलोबलाइज चीजें और व्यापारी हो रही हैं, आदमी नहीं। क्या कोई भी दुनिया में कहीं भी जा और बस सकता है? विश्वग्राम टाटा और अंबानी के लिए है, हमारे-आपके लिए नहीं।राजकिशोरhttps://www.blogger.com/profile/07591365278039443852noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-28780228551341655622007-09-13T21:04:00.000-07:002007-09-13T21:04:00.000-07:00इसी बात का तो रोना है सर की हम ग्लोबल हो या नही ये...इसी बात का तो रोना है सर की हम ग्लोबल हो या नही ये हमारे पसंद और न पसंद का मामला नही है ग्लोबल तो एक सिचुयेशन है और और उस हिसाब से हमे काम करना है ....भाषा प्रयोग को तो मानसिकता और अनिवार्यता का मसला मानता हू .इसलिये हिन्दी हो ठीक बात है ....लेकिन माफ़ करे एक अथॉरिटी या स्टिक यार्ड की तरह नही. फ़िर आप ही देखिये न की कही न कही भाषा की हठधर्मिता और पांडित्यपूर्ण रवैये ने लोगो को हिन्दी से दूर कर दियाविनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-70925151996423619442007-09-13T11:13:00.000-07:002007-09-13T11:13:00.000-07:00सर, अगर इसी तरह होना है, तो मैं ग्वोबल होना नहीं च...सर, अगर इसी तरह होना है, तो मैं ग्वोबल होना नहीं चाहता।राजकिशोरhttps://www.blogger.com/profile/07591365278039443852noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4994822875259141946.post-26250882520691578182007-09-13T10:47:00.000-07:002007-09-13T10:47:00.000-07:00राजकिशोर जी हिन्दी के प्रति इतना प्यार और अंग्रेजी...राजकिशोर जी हिन्दी के प्रति इतना प्यार और अंग्रेजी को लेकर इतना ग़ुस्सा ..... कुछ ज्यादा नही हो गया .मौका जब हिन्दी दिवस का है तो हिन्दी को लेकर प्यार आना जायज है ....लेकिन तब उन मंसूबों का क्या होगा जिसको लेकर सरकार के साथ -साथ हिन्दी जगत भी ख़ूब उत्साहित है. ...की अंग्रेजी -हिन्दी का काकटेल <BR/>बनायेगे और globalisation के प्रोजेक्ट को पूरा करेंगे. ऐसा प्रोजेक्ट जिसमे विदर्भ का किसान और हिन्दी का चोट खाया विद्यार्थी भी सपने देख रहा है. जरा बताये तो की अंग्रेजी को इस तरह लतियाकर भला कोई ग्लोबल हो पायेगाविनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.com